ईद-उल-फित्र धूम धाम से मनाई एक दूसरे से गले मिलकर बाटी खुशियां दिखी हिन्दू मुस्लिम एकता

ईद-उल-फित्र धूम धाम से मनाई एक दूसरे से गले मिलकर बाटी खुशियां दिखी हिन्दू मुस्लिम एकता

प्रधान संपादक नईम खान

आज नगर सुल्तानपुर में ईंद का तेवर बड़े धूमधाम से मनाया गया
नगर सुल्तानपुर में दिखी हिन्दू मुस्लिम एकता हिंदू समुदाय के लोगों ने मुस्लिम भाइयों को गले लगाकर दी बधाई शुभकामनाएं पुष्प माला पहना कर किया स्वागत नफरती लोगो के मुंह पर मारा तमाजा

सुल्तानपुर नगर में आज सुबह 8 15 पर पर ईद की नमाज अदा की गई जिसमें भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ईदगाह पर नमाज अदा की नमाज अदा होने के बाद एक दूसरे से गले लगकर मुबारक बाद दी गई वही सुल्तानपुर पुलिस प्रशासन एवं तहसीलदार सहित आला अधिकारी ने सुरक्षा की दृष्टि से चाकचौबंद इंतजाम किए
वही नगर सुल्तानपुर वैसे तो चैन ओ अमन का टापू कहा जाता है लेकिन फिर एक बार सुल्तानपुर में भाई चारा कायम रखते हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा नमाज अदा कर लोट रहे मुस्लिम समुदाय के लोगों का फूल माला पुष्प बरसा कर जोरदार जगत किया एक दूसरे को मिठाई खिलाकर ईद की बधाई शुभकामनाएं दीं नफरत फैलाने वाले के मुंह पर करारा तमाचा पड़ता दिखाई दिया इस नगर सुल्तानपुर का इतिहास रहा है यहां नफरत फैलाने वालों की कभी दाल नहीं गली हमेशा नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोली जाती रही हैं

क्यों मनाई जाती है?

ईद-उल-फित्र रमज़ान महीने के समापन पर मनाई जाती है। रमज़ान इस्लाम का पवित्र महीना है, जिसमें मुसलमान पूरे महीने रोज़ा (उपवास) रखते हैं। यह रोज़ा सुबह सूर्योदय से पहले (सुहूर) से शुरू होकर सूर्यास्त (इफ्तार) तक चलता है। यह महीना आत्म-संयम, इबादत (प्रार्थना), और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है। ईद-उल-फित्र उस खुशी का उत्सव है जो रमज़ान के सफलतापूर्वक पूरा होने पर मनाया जाता है। इसे “रोज़े की ईद” भी कहते हैं।

महत्व:

यह त्योहार कृतज्ञता, क्षमा, और भाईचारे का संदेश देता है।

रमज़ान में रोज़े रखने से आत्मशुद्धि होती है और गरीबों के प्रति सहानुभूति बढ़ती है।

ईद का दिन अल्लाह का शुक्रिया अदा करने और एक-दूसरे के साथ खुशियाँ बाँटने का अवसर होता है।

कैसे मनाई जाती है?
ईद की सुबह लोग नहा-धोकर नए या साफ कपड़े पहनते हैं।

ईद की नमाज़: मस्जिद या ईदगाह में सामूहिक रूप से विशेष नमाज़ अदा की जाती है।

ज़कात-उल-फित्र: नमाज़ से पहले गरीबों को दान दिया जाता है, ताकि वे भी ईद मना सकें।

परिवार और दोस्तों से मिलना, ईदी (उपहार या पैसे) देना, और स्वादिष्ट व्यंजन जैसे सेवइयाँ, बिरयानी, शीर खुरमा आदि खाना इस दिन की परंपरा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
ईद-उल-फित्र की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के समय से मानी जाती है। हिजरी संवत के पहले वर्ष में मदीना में इसकी शुरुआत हुई। यह शव्वाल महीने की पहली तारीख को मनाई जाती है, जो चाँद दिखने पर तय होती है।

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